शुक्रवार, 16 मार्च 2012

Dr Harisuman bisht is keen observer of life: V. K..Joshi

At its best, literature projects the diverse nuances of the human beings and the world.Surely, a truly creative work expends awareness of its readers.Not only this but also it may even change a reader weltanschauung world outlook.Resolve his many doubts that keep invading his psyche often. Born on 1st January,1958 at a small village of Kumaon, Uttara khand,Dr.Harisuman Bisht is M.A.,Ph.D.in Hindi.Dr Bisht is a keen observer of life:of events, people and situations. His portrayl of mankind has an inherent universality.His concern about the dignity of the common man gives a unique dimension to his literary creations.Even when his charaters belong to the poorest section of the society and do not have any resources, thy are not mentally weak and do not bow down before the hostile forces. the protagonist Aachhri Machhri is the best example of it.She fights against all odds with a quiet dignity and grace and takes on a giant form at the end of the novel. Bisht's literature has a great variety. His recent novel BASERA takes its readers into the dark and macabre world of the abnormal psychology.The author has very competently and painstakingly tried to unravel the mysteries of the human character and mind. THE SILENCE AND SLOW PACE OF THE NOVEL ENABLE A READER TO FEEL THE FULL GAMUT OF THAT HORRIFYING TRAGEDY THAT SEEMS TO HAVE ITS PROVENCE IN A MALL CULTURE . His female charaters are simply superb. Even when they violate codes of the narrow- minded society and fall victims to punitive measures, they do not lose their charm and pried. Their moral force is very appreciable.They are born warriors.The heroine of AACHHRI_MACHHRI is an innocent victim of lust .She is punished by her father and shunned by the society. And , yet, she remains undefeated. She is a rock breaker. She has the most positive view towards life. Any female who has fallen into darkness can get inspiration from Aachhri. Even the most educated and fashionable ones. Bisht's literature has a note of robust optimism. It advocates the acceptance of life. The one that leads you to glory. It is a meaningful literature. MORE THEN OFTEN THE AUTHOR BROODS OVER THE PLIGHT OF THE HUMANS IN A COLD AND UNSYMPATHETIC WORLD. HE SEEMS TO TELL HIS READERS THAT DESPITE ALL SQUALOR AROUND US PERHAPS THIS IS THE BEST PLACE TO LIVE IN. This literature can best be described as 'dulce et utile'-sweet and useful. It gives you pleasure on the one hand, on the other hand, it gives you strength to bear the brunts of life calmly. In his entire literature, he seems to have been exploring endlessly the unexplored frontiers of beauty.

शुक्रवार, 13 जून 2008

चर्चित पुस्तक :
वसीयत - लेखक - सुदर्शन वशिष्ठ

अनुभव खंडों से गुजरती कहानियाँ
रा_-

सुदर्शन वशिष्ठ पिछले लगभग चालीस वर्षो से लगातार कहानी लिख रहे हैं । आंचलिक कहानियो से लेकर कस्बाई , शहरी, दफ्तरी और राजनैतिक क्षेत्र तक इन्होने लेखनी चलाई हैं। कहानियो मैं .कथ्य और बुनावट की सघनता इनकी खूबी रही । कम से कम शब्द तथा साडी मारकr संवाद से विस्तार से दूसरी प्रमुख विशेषता हैं । अनावश्यक विस्तार से ये हमेशा

बचते रहे हैं । भाषा के स्तर पर मार्मिक चित्रणों मैं भाषा काव्यमय हो जाती है जो सीधे चोट करती है । कोई एसी पत्रिका नही है जिसमें वशिष्ठ की कहानियाँ न छापी हों । इस संग्रह की कहानियाँ भी अलग अलग पत्रिकाओं मैं को प्रकाशित हुई हैं । इस संग्रह की पहली तीन कहानियाँ कहानीकार की परम्परा की तरह ग्राम्य परिवेश दफ्तरी की हैं । जिनमें बारिकियौं कथ्य और शिल्प व विचार की नवीनता है । दो कहानियाँ "खाली कुर्सी " तथा " " जीवन दर्शाती कहानियाँ हैं जबकि अन्तिम दो कहानियाँ :"दबाव " तथा "कहाँ गया वह आदमी "बिल्कुल अलग तरह की कहानियाँ हैं । जोसंभवतः लेखक का नया और सफल प्रयोग है :कथ्य और भाषा व शिल्प, दोनों ही स्तर पर ये विश्लेषण की मांग करती हैं ।

"मीठा भात " कहानी शहर में विस्थापित व्यक्ति की घर वापसी पर संवेदना की कहानी है । गाँव के वातावरण का जोरदार ढंग से चित्रण हुआ है । पुरानी घटनाएँ जो प्रतीकात्मक रूप से सामने आती है बहुत ही प्रभावोत्पादक स्थितियां सामने लाती है। "वसीयत "कहानी जो संग्रह का शीर्षक भी है उपेक्षित बुजर्गों की दशा पर एक मार्मिक कहानी है । यह कहनी समकालीन जीवन की एक अद्भुत मिशल है । वशिष्ठ की कहानियाँ आज के जीवन से जुड़ी हैं । जो की बहुत महत्व पूर्ण हैं । वशिष्ठ कभी -कभी कहानी मई किसी चीज को छुपाकर चलते हैं विस्तार से नहीं बताते ,कुछ न कुछ अन कहा छोड़ देना इनकी विशेषता बन जाती है । और यह अनकहा ही कहानीमूल बिन्दु बन जाता है । यह संग्रह कई दृष्टया पठनीय एवम संग्रह योग्य है । -----

समीक्षक : रत्नेश

सेतु से साभार


बुधवार, 28 मई 2008

पुनर्वास : लेखक - हरिसुमन बिष्ट

फिएट उसकी पसंदीदा कार थी कोई भी नई कार खरीदने की स्थिति में होने के बावजूद वह उसके जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन गई थी वह उसके मडगार्ड पर बैठकर सोचने लगी कि कालिंदी कुञ्ज कि इस बैराज में उस पर बैठकर ही जायेगी यदि ऐसा नहीं हुआ तो भी फ़िएट कार को देखकर कोई भी यह अनुमान लगा सकता है की डुबकी लगानेवाली अनामिका ही थी -सुरेश की पत्नी उसके काले घुंघराले बालों ने उसका चहरा ढक रखा था हवा का तेज झोंका आता तो थोड़ी देर के लिए चेहरे के नाक -नक्स साफ़ -साफ़ दिख जाते थे। वह बेखबर थी मगर दृढ़ निश्चय के साथ दरअसल मृत्यु संकट को झेल वह एक ऐसे अपरिचित लोक में जाना चाहती थी , जहाँ जाने के लिए उसे किसी तरह की जानकारी नहीं थी। वह तल्लीन होकर सोच रही थी की उसकी यह यात्रा अपनी निजी यात्रा होगी ऐसा सोचते हुए उसकी क्रूर हँसी छूट गयी कोई उसका पीछा कर रहा है , उसे पता ही नहीं चल रहा था वह घर से निकलकर तेज रफ़्तार SE CHAL RAHI FIAIT सभी जीव निर्जीव KO पीछे छोड़ रही थी , जीवन पीछे छूटता जा रहा था वह दूर होती जा रही थी नागार्जुन अपार्टमैंट की चारदीवारी से बिना मृत्यु को पाप्त किए एसा सोचते उसे बहुत सुखद अनुभूति हो rahI थी


समय तेजी से बदल रहा था नाते - रिश्तों की परिभाषा बदल चुकी थीरहन -सहन के तौर -तरीके एकदम बदल चुके थे कुछ दिन तक वह सब बदला-बदला सा अच्छा लगाचाँदनी चौक की तंग गली के जीवन से नागार्जुन अपार्टमैंट की जिन्दगी ने उसे एक अलग दुनिया का AHASAS कराया था एक खुलापन था अपार्टमेन्ट की सबसे UNCHI मंजिल की बालकनी से उड़कर कालिंदी कुञ्ज की वादियों में छुप जाने का मन करता था


बहरहाल चांदनी चौक KATARE में बने एक KOTARNUMA घर की मधुर स्मर्तियों में, जहाँ उसकी दादी ने उसे वहां चालकाने वाली बैल गाडी , ट्राम के किस्से सुनाये थे वहां , उसने हवा में मार करनेवाले मिग विमानों की गर्जन भी सूनी थी पेटेंट टैंकों का शोर जब उसने सूना तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ था , और वह सोचती थी की कहाँ से आते होंगे ये टैंक , कितनी बड़ी होगी उनकी दुनिया , अपनी गली में तो एक टैंक भी नहीं घुस घुस दुनिया , अपनी गली में तो एक टैंक भी घुस नहीं पायेगा अपनी उस तंग गली की चौडाई का अनुमान लगाने का मौका उसे दो राष्ट्रीय त्यौहारों पर मिलता था और उसी दिन मौसम ने साथ दिया तो कोटर से बाहर खिंच लाने का प्रयास करती ताजा हवा उसी दिन सनसनाती हुई चलती महसूस होती थी वह विकास था देश की , चांदनी चौक की सड़कों का ।किस्मत का जोर कतरा चांदनी चौक ही था दस वर्ष पहले सुकेश से शादी होने पर सब कुछ जस का तस् था सिर्फ़ कोटर बदला और कतरे का मुहाना बदला था , बस . अपार्टमेन्ट में आने के कई दिनों तक वह चांदनी चौक की यादों से मुक्त नहीं हो पायी थी एकदम सन्नाटा बुनता घर चिल्ला रेग्युलेटर से उड़ उड़ कर आते मच्छरों की भिनभिनाहट उसे डरा - सी देती थी वह अपना मन बांटने के लिए घर को सजाने में लग जाती थी दिन का अधिकाँश समय बंद कमरों मेंबीतता था जहाँ वह अपनी एक अलग दुनिया इजाद करती थी जिससे बाहरी दुनिया के कोने - कोने से जुड़ने की कोई कमी उसे महसूस हो इसलिए नागार्जुन अपार्टमेन्ट के सबसे ऊँची मंजिल पर बने फ्लोर को वह एक सम्पन्न घर बनाने में सफल हो गयी थी फ्लैट की हर चीज में अपना सबकुछ दिखने लगा उसे धीरे -धीरे कुछ दिन के बाद उसने बंद कमरे के बाहर यानी ड्राइंग रूम से बालकनी की तरफ़ स्लाइडिंग डोर को खोलकर एक आराम कुर्सी लेकर बैठाना शुरू कर दिया था नोयदा से दिल्ली की तरफ़ दौड़ती कारें , बस और स्कूटर को देखकर उसका मन भी मचलने लगा था कभी - कभी सुंदर चमकती कार का पीछा करती उसकी नजर चिल्ला रेग्युलेटर से समाचार अपार्टमेन्ट तक दौड़ती , मगर चौड़ी और अधिक चौड़ी होती जा रही उसकी आंखें स्थिर नहीं रह पाती थीं तब वह सोचती -सचमुच यह दुनिया बहुत बड़ी है। मन करता है की एक सिरे से चलना शुरू करूँ और जीवन भर चलती रहूँ काश उसके पास भी एसी ही कार होती तो .... पता नहीं सुकेश के पास बैंके बैलेंस कितना होगा इस फ्लैट की देनदारी की उतरन चोटि भी होगी या नहीं रोजमर्रा के खर्चों की यहाँ आने के बाद कोई सीमा नही रही इससे तो चांदनी चौक का कतरा अच्छा था एकदम कम खर्चीला - एक रुपये की मिर्च , एक रुपये का धनिया और तमाम दैनिक आवश्यकताओं की चीजें यहाँ की अपेक्षा सस्ती और मुफ्त की लगती हैं अनामिका जब भी ग्रहस्थी के विषय में सोचती तो उसका मन सुकेश को यह कहने के लिए उत्सुक रहता था - "इस अपार्टमेन्ट की एक भी गैराज एसी नहीं जिसमें बेशकीमती कार खादी हो तुम्हें अपनी गैराज खाली नहीं लगती चाद्न्दानी चौक की बात और थी सही अर्थों में हम अपने अतीत को चांदनी चौक के कतरे में छोड़ आए हैं वहां तो टांगें अपनी ठौर भी नही ले पाती थी अब यहाँ रहने लगे तो माहौल के साथ - साथ चलना होगा " " मैं भी इस कभी को महसूस कररहा था , कर्ज की परतों को कोई देखता नहीं अनामिका और यह कोई पूछेगा की गाडी किस्तों की है या नगद भुगतान पर गाडी आवश्यक थी , वह हमने ले ली . होने पर कुछ अजीब - सा लगता था मन में जैसे सबकुछ होते हुए भी कुछ नहीं हो " अनामिका की कहने भर की देर थी , हफ्ते भर में सुकेश ने एक फिएट कर खरीद ली ।अनामिकाबहुत खुश हुई थी सुकेश को कतरे की जिन्दगी में कभी गाडी की आवश्यकता ही नहीं महसूस हुई थी मगर नागार्जुन अपार्टमेन्ट का फ्ल्येत और कार जैसे एक दूसरे के प्रआय बन चुके थे और माल का थोक थोक व्यापरपर मेंपरेशां होता रहता था सुकेश का सारा समय आइसक्रीम और कस्टर्ड का थोक व्यापार करने में व्यतीत था ग्राहकों को माल सप्लाई कर पर वह बहुत परेशान रहता था एसा अनामिका भी भलीभांती जानती थी कई बार उसका मन हुआ की सुकेश कोई कहे ,"शाम को जल्दी लौट आया करे मैं दिन भर अकेली बोर हो जाती हों कोई बात करने को नहीं मिलता " अपने विचलित मन को समझाती हुई चांदनी चौक के कतरे में बिताये दिनों में जिन्दगी के संवाद ढूढने लगती थी भरे -पूरे में रहने के कारण मुहं में फंसे शब्दों ने चेहरे की आक्रति बदल दी इसलिए तो एक रात धीरे से वह सुकेश के कान में फुसफुसाई थी -" क्यों हम इस कोटर से कहीं दूर रहने को चले जाएँ " सचमुच सुकेश को उसका सुझाव अच्छा लगा था हौले -हौले बोला था -" मुझे कभी -कभी बड़ा आश्चर्य होता है अनामिका की जितनी चोटी चादर लाता रहा हूँ वह ओढ़ते वक्त बड़ी ही लगती है " अनामिका को जब तब सुकेश के एसे ही शब्द गुदगुदाते रहते थे घर में .सी.,रंगीन टी .वी.,टेलीफोन यहाँ तक की ड्राइंग रूम में एक कंप्यूटर के लिए दूसरी बार कहने की जरूरत नहीं पडी थी सभी साधन सुलभ होने के बावजूद उसको हमेशा एकांत की पीडा रहती थी जब वह बहूउट दुखी हो जाती थी तो कहती , "इस अपार्टमेन्ट के लोग अजीब हैं सीढियां चढ़ते उतारते उसने आज तक किसी फ्ल्येत में बातें करते नहीं सूना उसने कई बार अपने ही फ्लोर में जाकर कुछ देर अपने एकांत को ख़त्म करने के लिए पहल करने की भी सोची, मगर हमेशा जिस फलायेत की तरफ देखा उसके दरवाज बंद ही दीखे "