शुक्रवार, 13 जून 2008

चर्चित पुस्तक :
वसीयत - लेखक - सुदर्शन वशिष्ठ

अनुभव खंडों से गुजरती कहानियाँ
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सुदर्शन वशिष्ठ पिछले लगभग चालीस वर्षो से लगातार कहानी लिख रहे हैं । आंचलिक कहानियो से लेकर कस्बाई , शहरी, दफ्तरी और राजनैतिक क्षेत्र तक इन्होने लेखनी चलाई हैं। कहानियो मैं .कथ्य और बुनावट की सघनता इनकी खूबी रही । कम से कम शब्द तथा साडी मारकr संवाद से विस्तार से दूसरी प्रमुख विशेषता हैं । अनावश्यक विस्तार से ये हमेशा

बचते रहे हैं । भाषा के स्तर पर मार्मिक चित्रणों मैं भाषा काव्यमय हो जाती है जो सीधे चोट करती है । कोई एसी पत्रिका नही है जिसमें वशिष्ठ की कहानियाँ न छापी हों । इस संग्रह की कहानियाँ भी अलग अलग पत्रिकाओं मैं को प्रकाशित हुई हैं । इस संग्रह की पहली तीन कहानियाँ कहानीकार की परम्परा की तरह ग्राम्य परिवेश दफ्तरी की हैं । जिनमें बारिकियौं कथ्य और शिल्प व विचार की नवीनता है । दो कहानियाँ "खाली कुर्सी " तथा " " जीवन दर्शाती कहानियाँ हैं जबकि अन्तिम दो कहानियाँ :"दबाव " तथा "कहाँ गया वह आदमी "बिल्कुल अलग तरह की कहानियाँ हैं । जोसंभवतः लेखक का नया और सफल प्रयोग है :कथ्य और भाषा व शिल्प, दोनों ही स्तर पर ये विश्लेषण की मांग करती हैं ।

"मीठा भात " कहानी शहर में विस्थापित व्यक्ति की घर वापसी पर संवेदना की कहानी है । गाँव के वातावरण का जोरदार ढंग से चित्रण हुआ है । पुरानी घटनाएँ जो प्रतीकात्मक रूप से सामने आती है बहुत ही प्रभावोत्पादक स्थितियां सामने लाती है। "वसीयत "कहानी जो संग्रह का शीर्षक भी है उपेक्षित बुजर्गों की दशा पर एक मार्मिक कहानी है । यह कहनी समकालीन जीवन की एक अद्भुत मिशल है । वशिष्ठ की कहानियाँ आज के जीवन से जुड़ी हैं । जो की बहुत महत्व पूर्ण हैं । वशिष्ठ कभी -कभी कहानी मई किसी चीज को छुपाकर चलते हैं विस्तार से नहीं बताते ,कुछ न कुछ अन कहा छोड़ देना इनकी विशेषता बन जाती है । और यह अनकहा ही कहानीमूल बिन्दु बन जाता है । यह संग्रह कई दृष्टया पठनीय एवम संग्रह योग्य है । -----

समीक्षक : रत्नेश

सेतु से साभार


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